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निवेदन
'जैन- जगती' न काव्य है और न कवि की कृति सो पाठक इसे उस दृष्टि से देखें । यह है समाज के एक सेवक का समाज - को संबोधन और समाज के भूत, भविष्यत और वर्तमान का दर्शन । मैं अपने को धन्य समझँगा अगर यह अपनायी जायगी और इससे कुछ लाभ उठाया जायगा ।
श्राचार्य श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरिजी व उनके सुशिष्य काव्य-प्रेमी मुनिराज श्री विद्याविजयजी का मैं अपार ऋणी हूँ, जिनकी एकमात्र कृपा से मैं यह कर सका हूँ ।
अगर महाकवि पं० अयोध्यासिंहजी 'हरिऔध' की अनुकंपा न होती तो 'जगती' में जो कुछ भी सरसता आ सकी है आ पाती। मैं 'हरिऔध' का अति ऋणी हूँ ।
'जगती' कुछ विलम्ब से निकली है। इसका हेतु यह है कि इसके साथ-साथ 'रसलता' व 'छत्र प्रताप ये दो काव्य लिखे गये, जिससे समय अधिक लग गया । इस विलंब के लिये मैं क्षमा का अधिकारी हूँ ।
सहृदय पाठकों से मुझे प्रोत्साहन व जीवन मिलेगा ऐसी आशा है।
बागरा ( मारवाड़ )
चै०
१० शु० १३-१६
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विनीत ॐ० दौलतसिंह लोड़ा 'अरविंद'