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* जैन जगती Perfect
भविष्यत् खण्ड
होता तनिक भी ज्ञान यदि तुममें, न होती यह दशा ! इस हेतु तुम भी मूर्ख हो, नारी तुम्हारी कर्कशा ! शिक्षा बिना मतिधर मनुज उल्लू, निशाचर, यक्ष है ! हम इस कथन की पुष्टि में खर लेख लो-प्रत्यक्ष है !!! ॥ २५॥
मिलकर सभी क्या अज्ञता का भार हर सकते नहीं ? दीपक जला तम तोमका क्या नाश कर सकते नहीं ? साहस करें-सब हो सके-हमको असंभव कुछ नहीं नरवर नपोलिन वीर को क्या था असंभव कुछ कहीं ? ॥२६॥
भेद-भाव-कुभाव को अब भूल जाना चाहिए, सब साम्प्रदायिक मोह-माया त्याग देना चाहिए, फैली हुई दुष्फूट का सिर तोड़ देना चाहिए, सबको सहोदर मानकर मन को मिलाना चाहिए ।। २७ ।।
करना हमें सब से प्रथम विस्तार शिक्षाचार का; होता यहीं पर जन्म हैं सद्ज्ञान, शिष्टाचार का। धमार्थ, शिवपद, काम का हरिद्वार शिक्षाचार है; दैन्यादि रोगों के लिये यह एक ही उपचार है ॥ २८ ॥
शिक्षा बिना उत्थान संभव हो नहीं सकता सखे ! शिक्षा बिना नहिं कर्म कोई पुण्य हो सकता सखे ! हा ! देव ! कुत्सित कर्म कैसे बढ़ रहे हैं नित नये ! आदर्शता में क्या विभो ! होंगे न हम विश्रुत नये ? ॥२६॥