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जैन जगती ® भविष्यत् खण्ड 8
RSESIGNREGar अब भी समय है चेतने का यत्न अब भी कर सको; अब भी नसों में शक्ति है, जीवन मरण को कर सको। जो हो चुका, सो हो चुका अब ध्यान उसका मत करो; पापी अनागत के लिए सब मन्त्रणा मिलकर करो ॥५॥
उदबोधन मेरे दिगम्बर भाइयो! श्वेताम्बरो! मेरी सुनो; मैं भी सहोदर आपका हूँ, आज तो मेरी सुनो। पारस्परिक रणद्वन्द्व को हम रोक दें बस एक दम; कंधे मिलाकर साथ में आगे बढ़ा दें रे! कदम ।।६।। हम पुरुष हैं, पुरुषार्थ करना ही हमारा धर्म है; पुरुषार्थ करने पर न हो, वह कौन ऐसा कर्म है ? होकर मनुज नैगश्य को नहिं पाश लाना चाहिए; नर हैं नहीं नारित्व का कुछ भाव होना चाहिए ॥ ७॥ हम ही ऋषभ, भरनाथ हैं, भुजबल, भरत, बलराम हैं; हम ही युधिष्ठिर भीम हैं, घनश्याम, अजुन, राम हैं। कंधे भिड़ाकर हम चलें, फिर क्या नहीं हम कर सकें ? कलिराज के काले शिविर उन्मूल जड़ से कर सकें ।।८।। पारस्परिक इस द्वेष के ये तीर्थ, आगम मूल हैं; अमृत गरल है हो रहा!-इसमें हमारी भूल है। मति-भ्रष्ट हम सब हो रहे, हम द्वेष में हैं सन रहे ! इस हेतु आगम, तोथं भी सब प्राण-नाशक बन रह !!! ॥६॥