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जैन जगती
वर्तमान खण्ड
जैन शिक्षण-संस्थाएँ विद्याभवन, चटशाल हैं या रोग के आवास हैं; वैषम्य, मत्सर, द्वेष के या साम्प्रदायिक वास हैं ! पौशाल कारावास हैं; अभियुक्त हैं बालक यहाँ; ये घूमते हन्टर लिये शिक्षक सभी जेलर यहाँ ॥ १५० ॥ विद्याभवन तो नाम है, विद्या न है पर नाम को ! विद्यार्थियों को मिल रही विद्या यहाँ हरिनाम को ! यदि शिष्य-गणना ठीक है, शिक्षक अधूरे हैं वहाँ ! शिक्षक जहाँ भरपूर हैं तो शिष्य थोड़े हैं वहाँ !! ।। १५१ ।। गुरु, शिष्य दोनों को जहाँ गणना उचित मिल जायगी; पर अर्थ की नित आपदा तुमको वहाँ पर पायगी। आर्थिक समस्या हो नहीं-ऐसेन गुरुकुल आज हैं; कुत्सित व्यवस्था देख कर आती हमें भी लाज हैं ! ॥ १५२ ।। सम्पन्न यदि सद् भाग्य से विद्याभवन हो हा ! कहीं; हा ! दुर्व्यवस्थित, पतित उनसा और मिलने का नहीं ! सब कार्यकर्ता चोर हैं, दल-बंधियों के जोर हैं ! शिक्षक गणों की पट रही, शिक्षक सभी गुण चोर हैं !! ॥ १५३ ॥ वैसे न गुरुकुल प्राज हैं ! वैसे न विद्यावास हैं ! वैसे न कुलपति शिष्य हा ! होंगे-न ऐसी प्राश है ! यदि पास में पैसा नहीं, मिलती न शिक्षा है यहाँ ! निर्धन जनों के भाग्य में तो मूर्ख रहना है यहाँ !! ॥ १५४ ॥