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वस्तु को खाने का त्याग कर देते हैं। वैसे ही अपने भले या बुरे कामों में सफलता को पाने के लिए कई लोग मूर्तियों को छत्र, चंवर, अंगी, केशर अथवा अन्य पदार्थ चढ़ाने का वचन देते हैं। जो लोग तीर्थकरों को इस प्रकार के पदार्थ और अन्य कीमती वस्तुएँ भेंट करने का गलत और धोका देने वाले ख्याल से पचन देते हैं उनकी यह समझ है कि तीर्थंकर, जो आकांक्षा, लोभ और संसार की अन्य तुच्छ बातों से अलग हैं, अचल न्याय के प्रवाह को बदल कर उनके कर्मों का ख्याल न कर उनकी इच्छानुसार न्याय देंगे।
__ भ्रम में पड़े हुए इन बेचारे अनुयायियों पर बड़ा तरस आता है ! महावीर द्वारा उपदेशित ऊंचे और श्रेष्ठ सिद्धान्तों को वे न समझ सके और इसी कारण वे ऐसी स्वार्थ से भरी हुई इच्छायें किया करते हैं जो कि उनको उत्तम तत्त्वो की प्राप्ति से वंचित रखती है ।
हम ऊपर जो कुछ कह चुके हैं उसकी सत्यता मे संदेह करने की आवश्यकता नही है। क्या यह कोई बतला सकेगा कि मूर्तिपूजकों में से कितने मनुष्य ऐसे हैं जो केवल आत्मिक उन्नति करने के लिये और मुक्ति प्राप्त करने के हेतु ही यात्राएँ करते हैं, मूर्तियों के सामने धनधान्यादि चढाते हैं और लंबी च.डी पूजाएँ करते हैं ? यदि प्रत्येक