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तब वे अर्थ का अनर्थ करके अपना मतलब गांठने लगे। इस स्वार्थ-साधन के कारण कई बुराइयां उप्तन्न हो गई। इस प्रकार जब वे संसार के झगडों मे बुरी तरह उलझ गये, अपने अनुयायियों की सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति करने के अयोग्य हो गये, व अपना स्वार्थ साधन करने के लिये कल्पित सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने लगे।
मनुष्य प्राणी स्वाभाविकतया मोज शोक और ऐश आराम को पसंद करता है। इन्ही स्वाभाविक मानसिक वृत्तियों का लाभ लेकर इन स्वार्थी और पतित साधुओं ने मूर्तिपूजा की अनेक मनमानी रीतियां निर्माण की और शास्त्रों के आदेशों की ओर से मुँह मोड लिया। उन्होंने मुक्ति-प्राप्ति का भाव सस्ता कर दिया। इस प्रकार असली बातों के स्थान में बनावटी बातों का प्रचार करके उन्होंने धर्मका रूप बिलकुलही बदल दिया और उसे एक विलकुल नया और विचित्र रूप दे दिया।
___उपरोक्त कथन की सत्यता की जांच करने के लिये अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजकों के मंदिरों मे जो धार्मिक क्रियाएँ प्रचलित हैं उनसे हमारे कथन की सत्यता मालूम हो सकती है। इन निरर्थक क्रियाओंका जैन शालों में कहीं भी उल्लेख न होनेका कारण यही है कि मोक्ष प्राप्ति के लिये जिस