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हमने ऊपर जो तुलना की है उसमें मूर्तिपूजक संप्रदाय साधुओं के जीवन चरित्र में जो भिन्नताएँ प्रकट रूप में दिखाई देती हैं उनका दिग्दर्षन मात्र है । यदि हम जैन सूत्रों के अनुसार उनकी अच्छी तरह परिक्षा करें तो हमारे इस मत का और भी समर्थन होगा कि वे किसी भी तरह महावीर के असली और सच्चे अनुयायी नहीं कहे जा सकते ।
यह सिद्ध करके कि दिगंबर तथा मूर्ति पूजक श्वेताम्बर महावीर के असली अनुयायी नहीं है, अब हम मूर्ति पूजा न करने वाले संप्रदाय का, जो कि जन साधारण में स्थानकवासी के नाम से प्रसिद्ध है, और महावीर का असली व सच्चा अनुयायी है, कुछ वर्णन करेगे । यही संप्रदाय महावीर का असली और सच्चा अनुयायी है ।
मूर्ति पूजा के हानिकारक फल |
इसके लिए यह आवश्यक है कि हम भूत काल पर दृष्टिपात करें । हम ऊपर यह सिद्ध कर आये हैं कि मूर्ति पूजा का प्रचार महावीर के बहुत बाद हुआ है और मूर्ति पूजा के साथ ही उससे उत्पन्न होने वाली अनेक बुराइयां भी आईं। धार्मिक सिद्धान्तों पर जिन साधुओं को संदेह था उन्होंने अपनी स्वार्थ वृत्ति को पुष्ट करने के लिए मूर्ति पूजा का प्रचार किया। स्वार्थ साधन के लिए उनको द्रव्य की