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हैं, परन्तु अभतिक एक भी मूर्ति ऐसी नहीं मिली जिसके लेख से यह सूचित होता हो कि वह महावीर अथवा उनके पूर्ववर्ती अन्य तीर्थंकरों के समय की हो । सबसे प्राचीन मूर्तियॉ, जो डॉक्टर फूहरर को मथुरा में मिली हैं केवल १८०० वर्ष की पुरानी हैं।
(१४) मूर्तिपूजकों का मन है कि पालीताना, गिरनार आबू, तारंगा, शत्रुजय और अन्य पर्वतों पर जो मंदिर और मूर्तियां हैं वे बहुत प्राचीन हैं और इसलिए वे कहते हैं कि मूर्तिपूजा का प्रचार तीर्थंकरों ने किया है । परन्तु पुरातत्वज्ञों ने इन मूर्तियों और मंदिरों के समस्त लेखों की देख भाल की है और उन्होंने यह निर्णय किया है कि ये अर्वाचीन हैं, इनकी स्थापना महावीर के बाद कई सदिया बीत जाने पर हुई है और ये मथुरा में मिली हुई मूर्तियों के बरोबर भी प्राचीन नहीं हैं । हम ऊपर वतलाही चुके हैं कि मथुरा की मूर्तियों भी डॉक्टर फूहरर के कथनानुसार १८०० वर्ष की प्राचीन हैं।
(१५) उन मूर्तियों के अतिरिक्त, जो पुरातत्वज्ञों ने खोदकर निकाली हैं, भारतवर्ष में हजारों जैन मंदिर हैं और लाखों मूर्तियाँ हैं, परन्तु उन में एक मूर्ति भी ऐसी नहीं है जिसके लेख और संवत यह सूचित करते हों कि वह महावीर पार्श्वनाथ अथवा अन्य किसी पूर्ववर्ती तीर्थंकर के समय की हो।