________________
(४९)
गया है कि उनके सिद्धांत दिगंबरों के सिद्धांतों से भिन्न हैं । दिगंबरों के शास्त्रों में श्वेताम्बरों का कई बार उल्लेख हुआ है परंतु श्वेताम्बरों के शास्त्रों में दिगंबरों का उल्लेख एक वार भी नहीं हुआ इस बात से सिद्ध होता है कि दिगंबर तथा उनके शास्त्र श्वेताम्बरों से पीछे के हैं ।
(५) दिगंबर ग्रंथ - कर्ताओं ने अपने ग्रंथों में जो रचनाकाल दिये हैं उनके देखने से भी मालूम होता है कि दिगंबरों के ग्रंथ अर्वाचीन हैं । इससे निस्संदेह सिद्ध हो जाता है कि दिगंबरों की उत्पत्ति महावीर के बाद बहुत पीछे हुई |
(६) दिगंबर मूर्तिपूजक हैं, परंतु महावीर ने मूर्ति पूजा का विधान नहीं किया । इसलिए दिगंबरों को जैन धर्म का सच्चा अनुयायी नहीं माना जा सकता । श्वताम्बरों का वर्णन करते समय हम मूर्ति पूजा का सविस्तार विवेचन करेंगे |
अब हम जैन मूर्तियों के लेखों से यह सिद्ध करत हैं कि दिगंबर अर्वाचीन है ।
उपलब्ध जैन मूर्तियों में से सब से प्राचीन मूर्तियाँ केवल १८०० वर्ष की पुरानी हैं और वे भी दिगंबर संप्रदाय से संबंध नहीं रखती यह जैनो के उवासग्गदसा नाम के सातवें अंग पर रूडॉल्फ हार्नले साहेब ने लिखी हुई प्रस्तावना के निम्न लिखित अवतरण से स्पष्ट हो जाता है ।