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२९, ३०, और ३१ नम्बर के पद्य अधिक महत्व के हैं और उनसे उस प्रश्न पर जो हमने उठाया है बहुत प्रकाश पडता है । इन पद्यों की व्याख्या, टीका में बहुत स्पष्ट दी हुई है और इसलिए मैं नीचे उनका संक्षिप्त अनुवाद देता हूं ।
केसी गौतम से पूछते हैं कि " चौवीसवें तीर्थंकर वर्धमान ने साधुओं को परिमित संख्या में सफेद और साधारण वस्त्रों को धारण करने की आज्ञा दी है; परन्तु तेईसवें तीर्थकर पार्श्वने वस्त्र धारण करने की आज्ञा देनेमें रंग रूप अथवा संख्या की कोई मर्यादा नहीं रखी है ।
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हे गौतम ! जब कि दोनोंने एक से उद्देशों को सामने रख कर नियम बनाये हैं तो फिर इस मतभेद का क्या कारण है ? हे गौतम ! क्या आपको वस्त्र संबंधी इस दोहरे नियम के कारण कुछ संदेह नहीं होता ?
गौतम उत्तर देते हैं कि हे केसी ! तीर्थकरों ने अपने केवल - ज्ञान द्वारा इस बातका निर्णय करके साधुओं की प्रवृत्तियों के अनुसार ( धार्मिक जीवन के लिये ) साधनो और बाह्य चिन्हों की आज्ञा दी है। एक तरफ तो उन्हों ने ऐसे वाह्य चिन्ह बतलाये हैं जो सरल स्वभाव व तेज विचार वाले साधुओं के लिए उपयुक्त हैं और दूसरी तरफ उन्होंने उन साधुओं के लिए बाह्य चिन्छ बतलाये हैं जिनकी मनोवृत्ति इसके प्रतिकूल है" ।