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(४३) हैं। उदाहरणार्थ बुद्धघोषने धम्मपदम् पर जो टीका लिखी है उसमें कुछ भिक्कुओं के विषय में लिखा है कि वे अचेलकों को निग्गंथों में अच्छा समझते थे, क्यों कि अचेलक सर्वथा नग्न रहते थे और निग्गंथ किसी न किसी प्रकार का वस्त्र लज्जा के लिये धारण करते थे । यह कल्पना भिक्कु की गलत थी। बौद्ध, मक्खलि गोशाला के अनुयायियों को अचेलक कहते थे।"
___ अतएव बौद्ध सूत्रों में निग्गंथ अर्थात् जैन साधुओं के इस हवाले से मालूम होता है कि महावीर के समकालीन बुद्ध देव के समय में जैन साधु वस्त्र धारण करते थे । यदि महावीर और अन्य तीर्थंकरोंने वस्त्र धारण करने का सर्वथा निषेध किया होता तो साधुओं के लिये शात्रों के आदेश के प्रतिकूल आचरण करना संभव न होता । इस से यह स्पष्ट है कि महावीर के समय में दिंगबरों के कथनानुसार सभी जैन साधु नन नहीं रहते थे। अतएव वे नमवा के आधार पर महावीर के असली अनुयायी होने का दावा नहीं कर सकते।
(४) हमारे पास एक ऐसी ही अकाट्य दलील और है जिससे मालूम होता है कि जैन सूत्रों में सर्वथा नग्नता की अनुज्ञा नहीं हैं । इस को सिद्ध करने के लिये हम उत्तराध्ययन सूत्र के २३ वें अध्याय में से एक ऐसे अंश का उल्लेख करते हैं