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________________ (३६.) जैन सिद्धांतो का उपदेश गणधरो को दिया और फिर उन्होंने आचारांग आदि को लेकर द्वादश अंगोकी रचना की । उन्होंने आगे चलकर लिखा है कि बारहवे अंग में पूर्व, सम्मिलित थे। समस्त अंगों और उनकी टीकाओं में समान रूप से यही लिखा है कि पूर्व, बारहवें अंग में सम्मिलित थे और इसलिये अन्य अंगों के साथ मे मौजूद थे। पूर्वो में क्या लिखा है। इसके सिवाय जेकोबी के मतानुसार सभी पूर्वो में वादविवादयुक्त साहित्य न था। पूर्वो की संख्या चौदह थी। इनके नाम और इनमें लिखित विषयों का संक्षिप्त वर्णन जैन सूत्रों में दिया है और इस वर्णन से हम जान सकते हैं कि केवल कुछ पूर्वो में ही वादविवादयुक्त बातें थीं और शेष पूर्वी में केवल जैन दर्शन का वर्णन किया गया था। पूर्वोके संबंध में प्रो. जेकोबी के अनुमान का खंडन । प्रोफेसर जेकोबी का मत है "कि पूर्वो का, अस्तित्व, केवल भद्रबाहु के समय तक अर्थात् महावीर के निर्वाण के लगभग दोसौ वर्ष बाद तक ही रहा और इम समय के वाद पूर्व सर्वथा विलुप्त हो गये”। यह मत स्वीकार नही किया जा सकता, क्यो कि पूर्वी का अस्तित्व वल्लभि की सभा तक जो ४५४ ई० मे हुई थी, मिलता है, जैन पट्टावली और
SR No.010241
Book TitleJain Itihas
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages115
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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