________________
( २२ )
चोरों की पात्रता दी गई है और इसी प्रकार समस्त हिन्दू साहित्य में उनको नीची श्रेणी मे रक्खा है और घृणा की दृष्टि से देखा गया है । इन बातों से इस बात का यथेष्ट ज्ञान हो जाता है कि संस्कृत के ब्राह्मण विद्वानों ने इन्हीं जैनों के साथ, कि जिन्होंने दर्शन शास्त्र, नीति शास्त्र, न्याय शास्त्र, अध्यात्म विद्या, विश्व विवरण विद्या, गणित और फलित, ज्योतिष, व्याकरण, कोष, अलंकार और अन्य भिन्न भिन्न विषयों पर बडे बडे पांडित्य पूर्ण प्रन्थ लिखकर संस्कृत साहित्य की अभिवृद्धि की है, कैमा कुत्सित व्यवहार किया है ।
महावीर के निर्वाण के पीछे कई शताब्दियों तक जम्बू स्वामी, प्रभव स्वामी, यशोभद्र, संभूतिविजय, भद्रबाहु, स्थूलभद्र इत्यादि प्रखर प्रतिभाशाली बडे धर्मात्मा विद्वान् तात्कालीन साहित्य मंडल में बड़े आदर के साथ चमकते थे और अपने प्रतिद्वन्दियों के हृदय में विस्मय उत्पन्न करते रहे । उनके आगे राजा महाराजा सिर झुकाते थे, उनके शांतिमय प्रभाव के सामने अत्याचार नष्ट हो जाता था, उनके मुख की दिव्य प्रभा से प्रतिस्पर्धियों का घमंड चूर चूर हो जाता था, और उनकी उपस्थिति में कुछ ऐसा तेज था कि उसके सामने विधर्मियों का सिर नीचा हो जाता था । इन महान् विद्वानो के बाद मानतुंगाचार्य, हरिभद्रसूरि, शांतिसूरि, हेमचन्द्राचार्य, मेरुतुंगाचार्य, और बहुत से अन्य विद्वन् हुए, जिन्होंने