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(७) और उनके सिद्धान्तो का जो उल्लेख पाया जाता है उस पर से प्रोफेसर जेकोबी ने उसका हवाला जैन सूत्रों की भूमिका में कई स्थानों पर देकर बडी योग्यता से सिद्ध कर दिया है कि जैन धर्म, बौद्ध धर्म से प्राचीन है। प्रोफेसर जेकोवी की दलीलों का सारांश इस प्रकार है:
(१) अनुगुत्तर निकाय के तृतीय अध्याय के ७४ वें श्लोक में वैशाली के एक विद्वान् राजकुमार अभय ने निग्रंथों अथवा जैनों के कर्म सिद्धान्त का वर्णन किया है ।
(२) महावग्ग के छठे अध्याय में लिखा है कि सीह नामक श्रावक ने जो कि महावीर का शिष्य था वुद्धदेव के साथ भेंट की थी।
(३) मग्घिम निकाय में लिखा है कि महावीर के उपाली नामक श्रावक ने बुद्धदेव के साथ शास्त्रार्थ किया था।
(४) अनुगुत्तर निकाय में जैन श्रावकों का उल्लख पाया जाता है और उनके धार्मिक आचार का भी विस्तृत वर्णन मिलता है।
(५) समन्नफल सुत्त में बौद्धों ने एक भूल की है। उन्होंने लिखा है कि महावीर ने जैन धर्म के चार * महाव्रतों
यह उल्लेख जैन साधुयोको सास व्रत ग्रहण करने के संबंध का है। पार्श्वनाथ के समय मे जैन साधुओं को (१) अहिंसा, (२) सत्य, (३) अस्तेय, और (४) अपरिग्रह नामक केवल चार व्रत लेने पड़ते थे। पार्श्वनाय के चार व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत और जोड दिया और इमप्रकार कुल मिलाकर पाच व्रत होगये । महावार से पहले ब्रह्मचर्य व्रत, चोथे अपरिग्रह व्रत में ही गर्मित था।