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________________ . ५९ किसीकाभी अपमान नहि करना. ____ मान मनुष्यकों वहोतही प्यारा लगता है. मानभंग अपमानस मनुष्यको मरणके समान दुःख होता है. यह वार्ता बहोतकरक १९एक जनको अनुभव सिद्ध हो चूकी होगी. कीसीकाभी अपमान न करते तिनका मीठे वचनादिसें सगान करनेसें अपन और दूसरेको लाभ होनेका संभव है. गुन्हागार मनुप्यकी भी अपभ्रछना करने करते तो मीठे मधुरे वचनसे यदि तिनको तिनके दोपका वरूप पहिले अच्छे प्रकारसें समझाया जाय तो बहोत करके पुनः अपराध-गुन्हा करना छोडदेता है. मृदुता यह ऐसी तो अजय चीज है कि तिनसे बज जैसा मान अहंकारभी पिगल जाता है. यह प्रभाव विनय गुणका है; वास्ते दूसरे निको संखों उपाय छोडकर यह अजब गुणकाही घटित उपयोग करना दुरुस्त है. ऐसा करनेसे अपना कार्य बहोत हेलाइसें पार हो सकता है. । ६० अपने गुणोंकाभी गर्व नहि कारना. उत्तम जन गर्व नहि करते है सो ऐसा समझकर. नहि करते है कि गर्व करनेसे गुणकी हानि होती है. संपूर्ण गुणवंत, ज्ञानी, ध्यानी चा मौनी समुद्रकी तरह गंभीरतावंत होनेसें गर्व नहि करते है. फअपूर्ण जन होते है सोही अपनी अपूर्णता जाहिर करते है. • अपनी पडाई करनेसें परनिंदाका प्रसंग सहनहीं आजाता है. प रनिदाके बडे पापसे, गर्व गुमान करनेवालेकी आत्मा लित होकर मलीन होता है, जिसे मिलेहुवे गुणोंकीभी हानि .
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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