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________________ विषय विकारके तावे होनेवाला पडा योगीश्वर हो, ब्रह्मा हो तोभी स्त्रीका दास बन जाता हैं और हिम्मत हारकर एक अबलाकाभी दीन दास बनता है यही विषयांधका फल है. ___पाय-क्रोध, मान, माया और लोभ यह चारोंकी पंडाल चोकडी कही जाती है. उन्हका संग करनेवाला यावत् उस्में तन्मय होकर पा हुवा क्रोधांध यावत् लोमांध कुछभी कृत्याकृत्य हिताहित नहि देख सकता. कपाय-कलुषित मति फिर कुछ औरही नया देखाव देता है. बूढा है पर वालककी तरह और पंडित हैं पर मूखकी तरह यावत् भूतग्रस्तकी मुवाफिक विपरीत-विरुद्ध चेष्टा करता है, जिस्से तिस्का बडा लोकापवाद प्रसरता हैं. कपायांध विवेकशून्य पशुकी तरह अपमान पाता है. यावत् बुरे हालसें मृत्यु पाकर दुर्गतिकाही भागी होता है. इसलिये मोधादि कषायकी सेवा करनेवालेको मनुष्य नहि मगर हैवान समझना. कट्टे दुष्मनसेंभी ज्यादा खाना खराबी करनेवाले कषायही है, ऐसा समझकर कुछ हृदयमें भान लाया जाय तो अच्छा. कट्टे शत्रु एकही भवमें दुःख दे सकते हैं. निद्रादेवीके वश पडे हुवे प्राणीकीभी बहोत बुरी हालत होती है. जो निद्राके तावे न होकर निद्राकोंही तावे करले वि. पंक धारण करते हैं उन महाशयोंको लीलाल्हेर होती है. विकथा-जिस्के अंदर स्व पर हित तत्वसें संस्कारित न हुवा ' हो, वैसी वाहियात बातें करनी सो विकथायें कही जाती हैं. राज
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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