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वणीत उत्तम जाति और न्यायके नियम पालनेके चार और समस्त अलक्ष्मी के कारणभूत अनीति, अन्यायके बुरे सडेकों दूर करनेके वास्ते अपन कब शक्तिमान् सववंत होयेंगे ? अपने परम पवित्र सर्वज्ञ परमात्मा तर्फकी अपनी पवित्र फर्जको यथार्थ समझकर अदा करने के वास्ते कब यत्नशील होयेंगे ? अपने निः स्वार्थी मित्र, बंधु, या माता पिता के समान श्री सद्गुरुका पवित्र हुकम मुजब चलने में अपन कब भाग्यवान् हो सकेंगे ? श्री सर्वश भाषित निष्पक्षपात धर्मकों भी सुन्ने की तरह या रत्नकी तरह पूर्ण परीक्षा करके निःसंदेहता से स्वीकार कर उनमें निश्चलता धारण *कर सहज समाधि लाभ संप्राप्त करके कब कृतार्थ होयेंगे ' श्रीतीबैंकर देव मान्य श्री संघ - तीर्थ की तमाम आशातना दूर करके उनकी यथाविधि सेवा कर स्वजन्म सफल करनेका दिन कब आ यगा ? श्री सर्वज्ञ आगमों की भी कुल आशातनायें दूर कर उनकी फरमाई हुई आज्ञाओंकों अमृत की तरह आनंदसें अंगिकार करके उसी मुजब अमल में लेने के वास्ते कब दृढ प्रतिज्ञ होयेंगें ? प्यारे आता गण ! जब अपन जैसी उत्तम सामग्रीका पूर्व पुण्यके योगर्स योग प्राप्त कर श्री सर्वज्ञ प्रभुकी पवित्र आज्ञाकों हुरूफ बहुरुक आराधनेमें अत्यंत रुचिवंत और श्रद्धावंत हो कर्त्तव्य परायण होयेंगे तभी सभी दुःख दौर्भाग्यकों दूरकर-चकचूर कर अपने संपुर्ण सुखी होयेंगे ! तथा ! परंतु जब तक जगहितकारीणी श्री जिनाशा की अनादर कर स्वच्छंदता अनेक पापारंभ करके अपन छल
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