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२९२ ___४२ " कथनी कथें सब कोय, रहनी अति दुर्लभ होय." __४३ " कथनी मिसरी सम मीठी, रहनी अति लगै अनीठी;"
४४ " जप रहनीका घर पावै, तव कथनी गिनतिम आवै." ४५ " लघुतामें प्रभुता वसै, प्रभुतासें प्रभु दूर." ४६ " परकी आश सदा निराश." ४७ " काचा घड़ा काचकी शीशी, लागत ठणका भागै;
सडण पंडण विध्वंस धर्म जस, तसथी निपुण निराग
वो घ८ विणसत र न लागै!" ४८" मद छक छाक गैल तजी विरला, गुरुकृपा कोउ जागे
तनधन नेह निवारी चिदानंद, पलियें ताके सागै.
वो घटः" ४९ " काहिक काझी काहिक पाजी, कवहिक हुए अपभ्राजी;
कहिक जगमें कीरति गाजी, सव.पुद्गलकी वाजी
आप स्वभाव मेरे अवधु सदा मगन रहना। ५० " शुद्ध उपयोग अरु समताधारी, ज्ञान ध्यान मनोहारी;
कर्मकलंकको दूर निवारी, जीव वर शिवनारी. आप.अ." ५१ " समताके फल मीठ है ! वास्ते समता रखकर चल !" ५२ " हाथ सोही साथ-दोगे वैसा पाओगे. पोवोगे वैसा लनोगे. ५३ "क्षण लाखिणा जाय; साधि सके तो साध!" . ५४ "कलको कालका भय है; वास्ते जो करना होय सो
आजही कर लै." ।