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________________ यु है. सर्वथा नित्य या सर्वथा अनित्य नहीं. पुनः यो मूर्त वा अमूर्त होते हैं. पुद्गल मूर्त है, चेतनादि अमूर्त है. शुद्ध ध्यानसे कमरुपी आवरण जिनने दूर किये है जैसे मुक्तिके स्वामी सर्वज्ञ देव-शरीरवाले सर्व उपद्रवरहित अरिहंत भगवान् और दूसरे शरीररहित सिद्धभगवान्-ध्येय है. __ ये जीवादिक छद्रव्य है सो चेतन और अचेतन लक्षण लक्षित है. वै सभी धर्मध्यानमें उन्हीके स्वरुपकी अंदर विरोध न आवै उस तरह बुद्धिवंत पुरुषोंका ध्यावने योग्य है. . जब ध्यान पूरा हो तब बुद्धिवान् पुरुष मनको समाधियुक्त चैराग्ययुक्त या करुणारुप समुद्रमें निमग्न करें. . या दूसरी तरहसे त्रिलोकनाथ-अभूत-परमेश्वर-परमात्माअविनाशी देवका साक्षात् ध्यान करने का अभ्यास करै. शक्ति और व्यक्तिको विविक्षासें त्रिकाल गोचर सामान्य द्रव्यार्थिक नयके मतसें साक्षात् एक जैसे परमात्माका अभ्यास करै, संसारअवस्थामें शक्तिरूप परमात्मा हैं, मुक्तावस्थामें व्यक्तिरूप परमात्मा हैं. अभेदनयसें आत्मामें भेद नहीं है. अब परमात्मा कैसे हैं सो कहताहुं. प्रथम साकार-शरीरके आकार सहित है, पीछेसे निराकार, आकाररहितभी है-यानि पुगलके जैसा उन्होंका आकार नहीं है. क्रिया रहित हैं, परमाक्षरस्वरुप हैं, विकल्परहित हैं, निष्कप-नित्य-आनंदमंदिर-विश्वरुप है, समस्त ज्ञेय पदार्थों के आकार जिन्होंमें प्रतिषिवित हैं, जिन्होंका स्वरूप मिथ्याष्टिवालोंने
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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