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૨૮૨ जैसी उमदा फकीरी बिगर जींदगी फजुलही समजनी; क्योंकि फजीतीभरी फकीरी या उपरके. अमूल्य शब्दोंसें विपरीत कानून मुजबकी फकीरी तद्दन बकरीके गलेके आंचलकी तरह निकामीही है. वास्ते वैसी फकीरीकों करोंडो धिकार फिटकार त्यानत हो, और सच्ची फकीर धन्यवाद. हो!!!
कवि शुभचंद्रजी विरचित ज्ञानार्णवांतर्गत सवीर्य
ध्यानका सारांश. ध्यान करनेकी पहिले कैसी प्रतिज्ञा करनी चाहिये सोकहते है।
(१) ध्यान करनेमें प्रथम उद्यमवंत हुवा ऐसा विचार करै कि-अहो! पूर्वमें ये भवरुपी महावनकी अंदर कमरुपी पैरीओंने अनंत गुणरू५ कमलको विकवर करनेवाले सूर्य जैसे मेरे आत्माकों गलिया. (२) फिर शोचै कि-आपके विभ्रमसेंही उत्पन्न भये कुवे रागादिक निबिड बंधनोंसें बंधे हुवे मेरी ये भयंकर संसारमें __ अनंतकाल तक विडंबना हुई. (३) अब कोइ महाभाग्य योगसे
मेरा रागज्वर नाश हवा और मेरी मोहनिंद भी दूर हो गई तो मैं ध्यानरूप तीक्ष्ण खड्गकी धारासें कर्मशत्रुकुं मार डाटुं. (४) अ.
शानद्वारा पैदा हुवे अंधकारको दूर कर मैं मेरे आत्माकोंही देखलु, __ और कर्मसे धनके बड़े भारी समूहकों जला दूं. (५) मिथ्याज्ञान
२५ ग्राह यानि हाथीको भी रोक लेनेवाला एक जलजंतु के दांतोंसें मिनका चित्त चर्षण हो गया है ऐसे सकल- लोगोंको देखने के