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________________ २६५ .. पवित्र शासन तर्फकी अपनी उत्तम और उचित -फज समझने के वास्ते और समझकर बरावर लक्षमें रखकर उसी माफक वतने के वास्ते श्री गौतमस्वामी, श्री जंबूस्वामी, श्री प्रभवस्वामी, श्री शयंभवस्वामी, श्री भद्रबाहुस्वामी, श्री आर्यसुहस्तिसूरी, श्री स्थूलिमद्रजी, श्री वयरस्वामी, श्री उमास्वातिवाचक, श्री आर्यरक्षितसूरी, श्री सिद्धसेनदिवाकर, श्री देवगिणिक्षमाश्रमण, श्री हरिभद्रसूरी, श्री धनेश्वरसूरी, पादीश्री देवसूरी, श्री हेमचंद्राचार्य, श्री जगचंद्रसूरी, और श्री हीरविजयसूरी वगैरः महान् प्रभाषिक पुरुषसिंहोंके अति उत्तम बोधजनक चरित्र खास लक्षपूर्वक वाचने विचारने और बन सके वहां तक अनुकरण करने लायक है. यदि इस तरह उक्त महापुरुषों सचरित्रोंका आवेहूब चितार अपने म"नमंदिरमें करनेमें आवै और वै पावन पुरुषोंके कदम दर कदमसे प्रयत्नपूर्वक चलकर स्वसाधर्मीभाइयों में ऐक्यता के साथ मुमुक्षु वर्गक उचित आचारविचारमें केवल परमार्थदृष्टिस चाहिये वैसा सुधारा करने में आवै, तो मेरे अति नम्र विचार मुजब स्व-उत्कर्ष और पर अपकर्ष करनेका वरूत कवी भी न आने पावै. उसी मुजय मुमुक्षु साध्वी समुदाय अपनी और पवित्र शासनकी उन्नतिके खातिर जो गुण निष्पन्न नामवाली यानि चंदनवाला, मृगावती, पुष्पचूला, राजिमति, तथा ब्राह्मी-सुंदरी समान महान् सतीयोंके टात लेकर परमपूज्य परमात्माकी पवित्र 'आज्ञानुसार चलकर परस्पर संपरु५ मजबूत ग्रंथी पाडकर विनयपुरःसर पर्तन रसखे,
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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