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खोटी मानलीहुई ममता अहंताको छोडकर अपने शुद्ध आत्मद्रव्यमेही अहंता, और शुद्ध ज्ञानादिक गुणोंमही ममता लावेंगे. ऐसा सविक लाने के वास्ते हमेशां हरकत करनेवाले सबोंको दूर कर साधक सबोंकोंही सजने चाहियें. यदि अपने हृदयमें सान होवै नो ऐमा अनुपम चिंतामणि समान, दश दृष्टांतसे दुर्लभ-किसी पूर्वके योगसे प्राप्त भया हवा ये अमूल्य नरभव अपन वृथा न खोदेना चाहिये; किंतु जितना आत्मवीर्य स्फुरायमान किया जा सके उतना स्फुरायमान करके बन सके उतनी सुकृत कमाइ कर लेनी चाहिये, जिससे करके अत्र और परत्र सुख शांति प्राप्त होवै. परम कृपालु परमात्माकी पवित्राज्ञाका आराधन करना ऐसा अमोघ लक्ष्य करना चाहिये. कि दरम्यान सेवन करनेमें आते हुवे धैर्य, गांभिर्य, औदार्थ, क्षमा, मृदुता, जुता, निर्लोभता, निराशंसता और सत्य विवेकतादि सद्गुणोंकी श्रेणिको देखकर भग चकोर प्रमोद पूर्वक पूर्ण प्रेमसे उसका अनुमोदन करै. इतनाही नहीं; मगर वै भी उ. सदगुणश्रेणिको अंगांगी भावसे भेटकर अपनी भविष्यका मजाक वास्ते वो अति उमदा और अमूल्य वारसा छोड जांय. __ अहा ! मेरे प्यारे भाइ भगिनीयें ! यदि प्रमादशत्रुको छोडकर परम मित्र समान परमात्माकी पवित्राज्ञाको प्रेमपूर्वक तन, मन धनसें आराधनेको तत्परता भज ले तो अहाहा ! शासन कैसी जाहोजलाली भुकते ? सकल मुमुक्षु वर्ग साधु साध्वीयें ऐयतास पवित्र आचार विचारकी शुद्धिसे द्रव्य और भावसे कितने सुखी