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- उसना परमार्थ ग्रहण करने में आवै, तो उमीद है कि समयानुसार वैसे मृढ़ जनाका भी हित हो सकै.
५ उपकारी महात्मा चाहे इतनी महेनत लेकर परम पवित्र सर्वज्ञ मणीन धर्मको प्रकाशम लानेके वास्ते विविध धर्म विषय संबंधी अ
छे अच्छ लेख लिख कर श्रोता वर्गका या सामान्य रीतिसं समस्त जैन कोमका ध्यान खींचते है परंतु जहांतक अपने लोग बेपरवाह रखकर अपना परायेका सच्चा हित किस प्रकार हो सके ? वो जाननेके वास्ते मतलब जितनी भी महेनत लेकर उनको पढे सुने
भी नहीं, या पढे सुने तो उस संबंधी चाहिये उतना विचार नहीं __करे, और कभी विचार कीया तौभी जहां तक उसी मुजब आ
चरण कर नहीं; यहांतक अपना पराया हित-कल्याण क्यो कर हो सकै ? अमेरीका जैसे प्रदेशमें एक जाती अनुभववाले मित्रके मुंहस सुने लिये मुजब खेडूत पिकार लोग भी अखबारोंकों वडी
आतुरतासे पढ़ने के वास्ते तत्पर रहते हैं, और यहांपरतो अपने प्रत्यक्ष अनुभवसे जान सकते है कि जनसमुदायका बड़ा हिस्सा तो स्वहित साधनेमें भी वे परवाह या आलसु बन रहता है. अहा ! असी सत्यानास निकालने वाली वेपरवाह छोडकर अपने मुमुक्षुजन (साधु साध्वीों या श्रावक श्राविका ) समयकी तर्फ पूरे तौरसें निगाह देके अपना अपना हित साधनेके लिये उत्कंठित रह तो उमीद और आशा है कि जरूर जल्दी या देहीमेंभी अपनेमें कुछ भी सुधारा हो सके सही ! सचा सत्य जो समझा जाय तो मनुष्य