________________
भवदुःखका अंत लाकर श्री गौतमरवामीजीकी तरह -निर्मल अध्यवसाय योगसे शुकल ध्यानका महान् लाभ प्राप्तकर, समस्त घाती काँको क्षयकर केवलज्ञान पाकर, परम महोदय-मोक्षपदका स्वामी होते हैं. श्रीगौतमस्वामीजीके पवित्र दृष्टांतसेही सिद्ध होता है कि प्राणी मात्रको अंतमै अपना कल्याण साधनेके वास्ते सद्विवेक धारन किये विग छुटकाही नहीं है. जो भव्यसत्व जन-सामग्री.
विद्यमान होने पर सद्विवेक धारन करके उसका लाभ लेता है उन__ का तो जन्मही सफल है; किन्तु जो मोहसित मूढ मनुष्य जैसी __मुश्केलीस मिलनेवाली सामग्री प्राप्त होने परभी उनको निकम, • गुमाते हैं वै पामर प्राणाओंकों पीछेसें अवश्य पिस्ताना पडता है.
असा समझकर शाहाने मनुष्यों ने सद्विवेक सजनेके वास्ते और अविवेक तननेके वास्ते जितना वन सकै उतना प्रयत्न करनाही, उपयुक्त है.
तिराग परमात्मा श्री वीरप्रसके अपन सब सेवक कहे जाते है तो भी अपन परम उपकारी पिता समान श्रीमहावीर स्वामी भमुजीकी पवित्र आज्ञा-मर्यादा उल्लंघन कर स्वच्छंदपनेस. अपनी मोज मुजव अच्छे मार्गको छोडकर उन्मार्ग भनें वो क्य अपनी थोडी शरम पेदा करनेवाला प्रकार है ? अपने सगे भाइसभी आले दर्जके अधिक प्रेमपात्र अपने साधर्मीभाइयोके
साथ भेदभाव यानि जुदाइ रखकर कुसंप करै वो भी कम. राजा पद है ? अपन साधौभाइयों के साथकी श्री सर्व