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१८० बंदनके वख्त वखांचलसें भूमि प्रमार्जन और स्तुति समयमै मुंहका उपयोग रखना. . ६ दर्शन होतेही मस्तकके साथ अंजली लगानी-चाहे उतने दूर से देवगुरु के दर्शन होवै कि तुरंत दोनु हाथ जोडकर मस्तकसे लगा लेना.
यह उपर कहे हुवे पंचाभिगम सर्व साधारण है. ___ राजा-पावर्ती वगैरकों तो दूसरी तरहके पांच अभिगम भी संभालने पड़ते हैं, सो नीचे मजब है:
जिनमंदिर या समवसरणमें दाखिल होतेही, अगर गुरुमहाराज के निवासकी जगहमें वंदनार्थ दाखिल होतेही छत्र-छत्ता, चमर-पंखा, मुकुट, तलवार लकडी वगैरः अवशस्त्र और जूते-बूट चांखडी-ये पांच राज्यचिन्ह वहार से ही छोडकर बहुत मानपूर्वक श्री देवगुरुकी यथाशक्ति भक्ति करै. इसके उपरांत निस्सिही वगैरः दशनिक, तथा जिन वनमें १० बडी आशातना सागनेका
और गुरुमहाराजकी १३ आशातनायें दूर करनेका स्वरुप सुज्ञ. अनोनें समझकर शुद्ध देवगुरुका यथाविधि आराधन करनेमें बन सके उतनी दरकार करनी; परंतु घेदरकार न करनी.
श्री जिनेश्वरके मंदिरको कोटकी हदमें द। बड़ी ... आशातनाये यत्नसें दूर करनी चाहिये.
१ तांबूल न खाना-पान सुपारी धगैरः श्री जिनहार ले जाकर न खाना.