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१७७ १० मणिवानत्रिक-आगे कहदिये मुजब जावंतिचे०. जावंत के०.-जयवियराय ये तीन सूत्रपाठकों मणिधानत्रिक कहते हैं. या मन-वचन-तनके योगकी एकाग्रता भी 'प्रणिधानत्रिक' कहा जाता है.
उपर मुजब संक्षेपसे दशत्रिकका खुलासा पूरा हुवा, उन उपरांत कितनीक उपयोगी और प्रसंगोपात वाचतोंपर भक्ति रसिककों लक्ष देनकी जरुरत है. आजकल पाणी प्रमादके वश होकर पवित्र प्रभुपूनादिक नित्यनियमोंमें भी बहुत करके अविधिदोष सेवन करते हुवे नजर आते हैं. सो कुछ नीचेकी बावत परसें समझनेमें • आयगा, और वो समझकर स्वपरके मुधारेके वास्ते बन सके उत
नी खंत रखने में आयगी. ___आगेके वरूतमें जिस तरह शास्त्रकी मर्यादासें जिनमंदिर, जिनप्रतिमा, प्रतिष्ठा-(सुविहित साधुके पाससे विधिवत् वासक्षेपादिक द्वारा) पूजा भक्ति वगैरः शाख नीति मुजब चलनेकी दरकार वाले सुश्रावक करते थे, उसी तरह-वैसे आदर-मान पूर्वक आज कल भाग्यसेंही होता हुवा नजर आता हैं. हां, शास्त्रविधिका अनादर होता हुचा तो नजर आता है. प्रभुभक्तिमें पपराते हुवे द्रव्योंकी जयणापूर्वक करनी चाहिये सो शुद्धिकी बे दरकारी रखनेमें आती है. बहुत करके गाडरीए प्रवाहकी तरह संमूर्छिम अनुधान क्रिया करनेमें आति हुई मालुम होती है.
___ असे विषमकालमें देवद्रव्य वगैरः संभालने में जैसी खत-फिक __ रखनी चाहिये वैसी रखी जाती मालुम नहीं होती. क्वचित् उस