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भावना भाइ जाय, वो वो द्रव्योंसें 'अग्रपूजा' करनेरूप दुसरी पूजा. और समस्त द्रव्यपूजा किये वाद प्रभुके सत्यगुणोंकी अंतःकरणसें वैसेही उत्तम गुण पानेके लिये स्तुति करनी सो 'भाव पूजा' समझनी . बरावर लक्ष रखकर यतना पूर्वक शास्त्राज्ञा मुजब परम पूज्य प्रभुकी उक्त तीन प्रकार से अपने अपने अधिकार गुंजास मुजब पूजा करनेवाला आप खुदही परमपदकों पाता है. आप परमात्मारूप हूवे बाद पूजाकी जरुरत नहीं; मगर वहां तक तो यथासंभव परमोपकारी पूर्ण आस्था से पूजा करने की जरुरतही है.
५ अवस्थात्रिक - परम कृपालु प्रभुकी छद्मस्थ, केवली और सिद्ध असें तीन अवस्था अलग अलग जगह भावै, सो इसतरह कि - प्रभुकों स्नात्र अभिषेक - हवण, अर्चन वगैरः की वख्त 'छद्मस्थ, ' अष्ट प्रातिहार्य के देखावसें 'केवली' और पर्यकासन - पद्मासन या काउस्सग्ग मुद्रा स्थित प्रभुकी 'सिद्ध' अवस्था है.
६. त्रिदिशि निरीक्षण विरतित्रिक - परमात्म प्रभुजीकी परम भक्तिमें रसिक जनोंकों प्रभुके सन्मुखही आपकी नजर रख-कायम करनी उस सिवायकी तीनु दिशाओं में नजर फिरानेका
त्याग करना.
७ पादभूमि प्रमार्जनत्रिक गृहस्थकों प्रभुकी द्रव्यपूजा किये चाद भावपूजा - चैत्यवंदन समय जयणा पूर्वक उत्तरासंग या वस्त्रांचलद्वारा तीन वख्त पंचांग प्रणाम करनेके वख्त भूमि वगैरःका जीवरक्षाके वास्ते मार्जन करना. मुनि वगैरः भावपूजा के अधिका
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