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करना; क्योंकि अपन। कल्यान करने। यो सर्वोत्तम साधन है. . पारहवां-परोपकारबुद्धि अवश्य रखनी. कहा है कि:
मालिनी छद. मनसि वचसि काये पुण्य पीयूष पूर्णा,
खि भुवन मुपकार श्रेणि भिः प्रीणयंतः इत्यादिमन वचन तनकी अंदर पुण्यअमृतसे भरे हुवे और तीन भुवनके पाणीओकों उपकारकी परंपरा से प्रसन्न करते हुवे कितनक सज्जन पुरुष होते है. सच तपासनेसे मालूम होता है के परोपकार ये तसे आपकाही उपकार है. निःस्वार्थपनसें परोपकार शील पुरुषोंको स्वाशय शुद्धिसें श्री तीर्थकर गणधरादिक महाश
રદ વમારી નિર્નર દોતી હૈ.
तेरहवाँ-जयणा-इस विषय पर सामान्य हितशिक्षाके शिरोलेखके नीचे यानि उस हेडिंगके नीचे कुछ थोडासा विवेचन किया गया है पास्ते पृष्ट १०६ में देख लेना. अपनकों घडी घडी पल पलमें जयणा माताको याद करनी चाहिये ही दुरस्त है. वो पूज्य माताकी सेवा किये बिगर धर्मकरणी फोकट है. व्यवहारकार्यमें भी जो सुपुत्र पूज्यजयणा-माताको नहीं मूलते हैं वै ही सत्य प्रशंसाके पात्र हैं.
आर्या छंद. जिण पूआ जिणथुणणं, गुरुथुअ साहम्मीआणवच्छ वहारसय सुद्धि, २हजत्ता तिथ्य जत्ताअ. ..