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________________ (पद दूसरा.) . चलना है जरुर जाकों, ताकों केसा सोषणा ? चलना. हुवा जब पातकाल, माता धवरावे बाल जगजन सकल करत मुख धोषणा, चलना. १ सुराभिके बंध छूट, घुबड भये अपूछे; ग्वाल बाल मिलके बिलोते हैं दिलोना. चलना. २ तज परमाद जाग, तुं भी तेरे काम लाग; चिदानंद साथ पाय वृथा नहीं खोना. चलना. ३ [ पद तीसरा.] “समझ परी मोय समम परी, जग माया सब झूठी मोय समझ परी; काल काल तुं क्या करे मूरख ? नही भरोसा पल, एक घरी. जग. १ गाफिल छिनभर नाहिं रहो तुम, शिरपर घूमे तेरे काल; अरी. जग. २ चिदानंद यह बात हमारी प्यारे, जानो मित्त मनमाहि खरी. जग. ३ (पद चौथा-राग करबा.) चितम धरो प्यारे चित्तमें धरो, एती शीख हमारी प्यारे अब चितमे घरो थोडेसे जीवन काज अरे नर ! काहेका छल प्रपंच करो? पित्त. १
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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