________________
२५ व्रत सूत्र हिमादि पंच अघ हैं तज दो अघों को, पालो मभी परमपच महाव्रतों को । पश्चात् जिनोदित पुनीत विरागता का, पाम्वाद लो, कर प्रभाव विभावता का ॥३६४।।
वे ही महाव्रत नितान्न मुमाधु धारे, निःशल्य हो विचरने त्रय गल्य टारें। मिथ्या निदान वतघातक शल्य माया एमा जिनेश उपदेश हमें मुनाया ।।३६५। है मोक्ष की यदि व्रती करता उपेक्षा, चारित्र ले विषय की रखता अपेक्षा । तो मढ़ भूल मणि जो अनमोल, देता धिकार कांच मणि का वह मोल लेना ॥३६६॥ जो जीव थान, कुल मार्गण योनियों में, पा जीववोध, करुणा रखता मवो में । प्रारम्भ त्याग उनको करता न हिमा, हो माधु का विमल भाव वहो अहिसा ।।३६७।।
निकर है परम पावन यागमा का, भाई। उदार उर धार्मिक प्राथमो का । सारे ब्रों मदन है, सब मद्गुणो का, प्रादेय है विमल जावन साधुप्रो का । है विश्वसार जयवन्त रहे हिमा, होती रहे सतत ही उसकी प्रगमा ।३६॥ ना क्रोध भीतिवश स्वार्थ तराजु तोलो, लेनो न मोल अष हिसक बोल बालो। होगा द्वितीय वत सत्य वहो तुम्हारा, मानन्द का सदन जीवन का महारा ॥३६९।।
[ २ ]