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श्रद्धापुरी सुरपुरी सम जो सजानो ताला वहाँ सुतप संवर का लगायो पाताल गामिनि क्षमामय खातिका हो प्राकार गुप्तिमय हो नभ छ रहा हो ॥२८६ प्रो धैर्य से धनुप-त्यागमयी मुधारो, सध्यान बान वल मे विधि की विदारो। जेता बनो विधि रणांगन के मुनीश ! होवो विमुक्त भव मे जगदीग धीग ।।२८७
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