________________ 11 अपरिग्रह सूत्र जो भी परिग्रह रखें विषयाभिलाषी, वे चोर हिंसक कुशील असत्यभाषी। संसार की जड़ परिग्रह को बताया, यों सँग को जिनप ने मन मे हटाया / / 140 / / जो मूढ ले परम सयम से उदासी, धारे धनादिक परिग्रह दास दासी। अत्यन्त दुःख सहता भवमे डुलेगा, तो मुक्ति द्वार अवरुद्ध न ही खुलेगा / / 141 / / जो चिन से जब परिग्रह को हटाता है, बाह्य के सव परिग्रह को मिटाता। है वीतराग समधी अपरिग्रही है देखा स्वकीय पथ को मुनि ने सही है // 142 / / मिथ्यात्व वंद त्रय हास्य विनाशकारी ग्लानो, रती, अनिशोक कुभीति भारी। ये नोकपाय नद चार कपायिया है यो भीतरी जहर चौदह ग्रथियों है / / 143 / ये ग्वेन धाम धन, धान्य. अपारशि शय्या विमान पशु वर्तन दाम दामी नाना प्रकार पट. प्रामन पक्तिया रे ! ये बाहरी जडमयी दस अथिया रे // 144 / अत्यन्त शात गतवनात नितान्त चंगा हो अनरग बहिर ग. निमग, नगा। होता सुखी सतत है जिम भानि योगी चक्री कहा वह सुखी उस भाति भोगी / / 145 / ममणमुतं