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सम्मत्पर्य समीक्षा हेतु । भेंट
प्रशाशक / सम्प:::
संघ नमस्कार
ॐ सर्वया ॥ श्री प्राचार्य विद्यासागर जी
चरण जहाज बैठ मुनिवर जी भव समुद्र को तरण चले हैं नगर-नगर से नर नारी जन झुक झुक शीश प्रणाम करे हैं प्रष्ट करम के नाश करन को निज में निज पुरुषार्थ करे हैं ऐमे विद्यासागर मुनि के चरण कमल हम नमन करे हैं
वीना वारहा के गजरथ में बात मर्म की एक कहे हैं इक नदिया के दोय किनारे निश्चय और व्यवहार कहे हैं ऐमी अनुपम वाणी सुनकर जन जन जय-जयकार करे हैं ऐसे विद्या के सागर को बार बार परणाम करे हैं
श्री एलक दर्शन सागर जी एलक दर्शन सागर जी भी दर्श ज्ञान प्रारूढ़ भये हैं द्रव्य करम का उदय देखकर भाव करम कछु नाहि करे हैं संवर सहित निर्जरा करके मुक्ति रमा को वरण चले हैं ऐसे ऐलक जी को लखकर भाव सहित हम नमन करे हैं
श्री एलक योग सागर जी ऐलक योगी सागर जी भी मुद्रा सहज प्रफुल्ल धरे दर्शन ज्ञान चरण पर चलकर रत्नत्रय की ओर बढ़े हैं पाहारों में अन्तराय लख करम निर्जरा सहज करे हैं ऐसे योगीगज को भी हम योग लगाकर नमन करे हैं
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