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जो स्वीय प्रो परचतुष्टय से सुहाती, स्यादस्तिनास्तिमय वस्तु वही कहाती । प्रो एक साथ कहते द्वय धर्म को है, तो वस्तु हो अवकतव्य प्रमाण सो है ।। यों स्वीय स्वीय नय संग पदार्थ जानो, तो सिद्ध हो अवकतव्य त्रिभंगम नो ॥७१९॥
एकेक भंग मय ही सब-द्रव्य भाते, एकान्त से सतत यों रट जो लगाते । वे सात भंग तब दुर्नय-भंग होते, स्यात् शब्द से सुनय से जब दूर होते ॥७२०॥
ज्यों वस्तु का पकड़ में इक धर्म प्राता, तो अन्य धर्म उसका स्वयमेव भाता। वे क्योंकि वस्तुगत धर्म, अतः लगानो, 'स्यात्' सप्त भंग सब में झगड़ा मिटायो ॥७२१॥
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