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जो भी अपूर्व परिणाम सुधार पाते, वे मोह के शमक, ध्वंसक या कहाते । ऐसा जिनेंद्र प्रभु ने हमको बताया, नज्ञान रूप तम को जिसने मिटाया ।।५५७।।
प्रत्येक काल इक ही परिणाम पाले, वे पानिवृत्ति करणा गुणथान वाले । ध्यानाग्नि से धधकती विधिकाननी को हैं राग्व ग्वाक करते, दुख की जनी को ।।५५८।।
कौमुम्ब के सदृश सौम्य गुलाब आभा, शोभायमान जिसके उर राग प्राभा । है. सूक्ष्मराग दगवे गुणथान वाले, वे वन्द्य, तू विनय से शिर तो नवां ले ।।५५९॥
ज्यों गुद्ध है शरद में सरनीर होता, या निर्मली फल डला जल क्षीर होता। त्यों शान्त मोह गूणधारक हो निहाला हो मोह सत्व, पर जीवन तो उजाला ।'५६०।।
सम्मोह हीन जिसका मन ठीक वैसाहो स्वच्छ, हो स्फटिक भाजन नीर जैसा । निर्ग्रन्थ साधु वह क्षीण कषाय नामी, यों वीतराग कहते प्रभु विश्व स्वामी ॥५६१॥
कैवल्य बोध रवि जीवन में जगा है, अज्ञानरूप तम तो फलतः भगा है। पा लब्धियाँ नव, नवीन वही कहाता, त्रैलोक्य पूज्य परमातम या प्रमाता ॥५६२।।
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