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भूले हुए पथिक थे पथ को मुधा से, थे आत पीड़ित छहों वन में क्षुधा से । देवा रसाल नरु फूल-फलों लदा था, मानो उन्हें कि प्रशनार्थ बुला रहा था ॥
ग्रामूल, स्कन्ध, टहनी भट काट डालें, श्री तोड़ तोड़ फल-फूल रसाल खा लें । यों तीन दीन क्रमशः कुलेश्या, है. सोचते कह रहे कर
धरते
संकलेशा ||
है एक गुच्छ-भर को इक पक्त्र पाता, बिना पतित को इक मात्र खाता ।
तो
यां
तीन क्रमशः धरने सुलेश्या, लेव्या उदाहरण यं कहते जिनेशा ।। ५३७-५३८।।
श्रतिदुराग्रह्
यं क्रूरता सत्य की विकनता वरस्य श्री तलभाव विभाव है कृष्ण के दुखद लक्षण, साधु
दुष्टतायें |
अदया दशायें ।
सारे,
टारें ।।५३९।।
अज्ञानता
सद्बुद्धि को
संक्षप में समझ,
विषय की प्रतिगृद्धताये, विकलता
मतिमन्दतायें
लक्षण
नील के है,
ऐमे कहें, श्रमण मालय
शील के है ।। ५४० ।।
भयभीत होना,
अत्यन्त शोक करना कर्त्तव्यमूढ़ बनना भट रुष्ट होना । दोपी व निन्द्य पर को कहना बताना, कापोत भाव सब ये इनको हटाना ।। ५४१ ॥
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