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________________ श्री श्रद्धा सुमन जैन गीता के रचयिता कर्नाटक प्रान्त के जिला बेलगांव में जैन धर्मानुयायी श्री मल्लप्पा जी की धर्मपन्नी श्रीमती की कव में जन्मे श्री विद्याधर जी जो कि दिगम्बर दीक्षा लकर १०८ प्राचाय श्री विद्यामागर जी के नाम में इस समय भारत देश में यथानाम तथा गुण में प्रमिद्ध है इस ग्रन्थ के कर्ता है । प्रापका जन्म ग्राम सदनगा में वि म. २००३ आश्विन शुक्ला पूर्णिमा की माता श्रीमती जी में हुअा था। पाप अपने चार भाइयो सहित अपने घर में रहते थे। प्राप जब 9 वर्ष के थे, उमी ममम में प्रापके मन में मनुष्य भव माथंक करने की उत्कट अभिलाषा थी, जिसके प्रतिफल में प्राचार्य शानिमागर जी के पास जाकर प्रापन उनके उपदेशामृत का पान किया प्रोर प्रान्म हित करने घर वालो में बिना पूछे घर छोड़कर चल दिये । गजस्थान में जयपुर नगर में प्राचार्य देगभूपण महागज का ममागम हो गया पोर मापने उनमे प्राजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया। गजम्मान का भ्रमण करते-करते अजमेर में प्राचार्य श्री ज्ञानसागर जी महागज के दर्शन हुये पोर प्राप उनके ममागम में रहने लगे । प्राचार्य ज्ञानसागर जी महाराज के पाम रहकर प्रापने जैन ग्रन्थी, काव्य प्रन्यो एवं न्याय ग्रन्यो का भी अध्ययन किया । प्रापकी विद्याध्यन करने की लगन, बुद्धि एव प्रतिभा में प्रभावित होकर तथा प्रापकी वीतराग परणनि को देवकर, प्राचार्य श्री ज्ञान श्री ज्ञानमागर जी महागज ने अजमेर मे दिनांक ३० जून १६६८ को प्रापको ब्रह्मचारी पद में सीधी मुनि दीक्षा प्रदान की। मुनि दीक्षा के समय मापकी प्रायु केवल २ वर्ष की थी। अनुकरणीय : पारका पूग परिवार एक भाई को छोडकर मभी लोग माता जी, पिताजी तथा दो भाई एव दो बहिने मोक्ष मार्ग पर चल रही है। दो भाई
SR No.010235
Book TitleJain Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherRatanchand Bhayji Damoha
Publication Year1978
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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