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________________ ( ७ ) जसका मुंह देखेगा, इस कोष के परताप से ॥ १० ॥ चाडाल से बदतर यही, गुरसा वडा हराम है । कहे चौथमल - कव हा भला, इस क्रोध के परताप से ॥ ११ ॥ तर्ज़ पूर्ववत् । गज़ल गरूर (मान) निषेधपर । सदा यहां रहना नहीं तूं, मान करना छोडदे 1 शहनशाह भी नहीं रहे तू मान करना छोडदे ॥ टेर ॥ जैसे खिले हैं फूल गुलशन में, अज़ीज़ों देखलो । आखिर तो वह कुम्हलायगा, तूं मान करना छोडदे ॥ १ ॥ नूर से वे पूर थे, लाखों उठाते हुक्म को । सो ख़ाक में वे मिल गये, तू मान करना छोडदे || २ || परशु ने क्षत्री हने, शम्भूम ने मारा उसे । शम्भूम भी यहां नहीं रहा, तूं मान करना छोडदे ॥ ३ ॥ कस जरासिंध को, श्री कृष्ण ने मारा सही । फिर जर्द ने उनको हना, तूं मान करना छोडदे || ४ || रावण से इन्दर दवा, लक्ष्मण ने रावण को हना । न वह रहा न वह रहा, तूं मान करना छोडदे || ५ || रब का हुक्म माना नहीं, अजाजिल काफिर बन गया । शैतान सब उसको कडे, तूं मान करना छोडदे || ६ || गुरु के परसाद से कहे, चौथगल प्यारे सुनो। लाजिजी सब में दडी, तूं मान करना छोडदे ॥ ७ ॥
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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