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( २५ ) जीनवर ॥२॥ मल्लीनाथ जिन मंगलरुप पचवीश धनुष सुन्दर स्वरुप ॥ ॥ श्री अरनाथ नमु वर्द्धमान श्री जीनवर ॥२॥सुमती पद्मप्रभु अवतंस वासु पूज्य शीतल श्रेयांस कुंथु पार्श्व अभीनन्दन भाण श्री जीनवर ॥ ४ ॥ इणी परे जीनवर संभारीय दुःख दारिद्र विघ्न निवारीये पच्चीस पांसठ परमाण श्री जीनवर ॥ ५॥ इम भणता - दुःख नावे कदा जो निज पासे राखो सदा ॥ धरीये पंच तणु मन ध्यान श्री जीनवर ॥ ५ ॥ नी जीनवर नामे वंछित मले मन वांछित सह प्राशा फले ॥ धर्मसिंह मुनी नाम निधान भी जीनवर ॥ ७॥ इति