________________
अनुभव तिको ॥ न सके रसनां उवर ॥४॥ अनँत ॥ पभनें श्री. सुरव सरस्वती ॥ देवि आपो आप ।। कहि न सके प्रभु तुम अस्तु 'ती॥ अलख अजया जाप ॥ ५॥ अनत।। मन बुध बांणा तौबिखै।। पहुचनहीं लगार। साखी.लोका लोकनो । निराबिकलप निरा कार ॥६॥अनतामातु जसा सिंहरथ पिता।। तमु सुत अनंत जिनदाबिनचंद अब ओलख्यो साहिब सहजा नँदाअनंताइति॥१४॥ .. दाल आज, नहें जारे दोस नाहलौ ॥. . .. एदेशी ॥ धरम जिणेसर मुज, हिबडै बसो प्यारो प्राण समान ॥ कबहूं न विसरूँ हो.., चितारूँ नहीं ॥ सदा अरबडत, ध्यान ॥१॥ घरम० ।। ज्यू पनिहारी कुंभ न बासरै ।। नट को चरित्र निदान ॥ पलक न बिसरे ही पद