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________________ ( १०२ ) हैं सार्द्ध द्वि अंगुल न्यून प्रमाण क्षेत्रवत्ती उन जीवोंके मनके पर्यायोंका ज्ञाता होना उसका ही नाम ऋजुमति है । और विपुलमति 1 | उसे कहते हैं जो समय क्षेत्र प्रमाण ही उन जीवोंके पर्यायोंका ज्ञाता होना उसका ही नाम विपुलमति है; और केवलज्ञानका एक ही भेद है क्योंकि वे सर्वज्ञ सर्वदर्शी है, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे सब कुछ जानता है और सब कुछ ही देखता है, उसका ही नाम केवलज्ञान है । किन्तु यह सम्यग्दर्शीको ही होते हैं अपितु मिथ्यादर्शीको तीन अज्ञान होते हैं जैसेकि - मतिअज्ञान १ श्रुतअज्ञान २ विभंगज्ञान ३ । ज्ञानसे जो विपरीत होवे उसका ही नाम अज्ञान है | और सम्यग्दर्शन भी द्वि प्रकारसे प्रतिपादन किया गया है जैसेकि - वीतराग सम्यग्दर्शन १ और छद्मस्थ सम्यग्दर्शन २ । अपितु दर्शनके अंतरगत ही दश प्रकारकी रुचि है जिनका वर्णन निम्न प्रकार से है | जीवाजीवके पूर्ण स्वरूपको जानकर आस्रवके मार्गों का वेत्ता होना, जो कुछ अर्हन् भगवान्ने स्वज्ञानमें द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे पदार्थोंके स्वरूपको देखा है वे कदापि अन्यथा नही है ऐसी जिसकी श्रद्धा है उसका ही नाम निसर्गरुचि है १ ॥ जिने उक्त स्वरूप गुर्वादिके उपदेशद्वारा ग्रहण किया हो उसका
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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