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________________ ( १०० ) वर्तना इस अपेक्षासे भी सादिश्रुत है भावसे अहन्के मुखसे पदार्थों का श्रवण करना वे भी एक अपेक्षा सादिश्रुत है ॥ (८) अनादिश्रुत उसका नाम है जो द्रव्यसें बहुतसे पुरुष परंपरागत श्रत पढ़ते आये हैं । क्षेत्रसे द्वादशाक्षरूप श्रुत महाविदेहोंमें अनादि हैं क्योंकि महाविदेहोंमें तीर्थंकरोंका अभाव नहीं होता और द्वादशाङ्गरूप श्रुत व्यवच्छेद नहीं होते । कालसे जहांपर उत्सप्पिणि आदि कालचक्रोंका वर्तना नही है वहां भी अनादिश्रत है जैसे महाविदेहोमें ही। भावसे क्षयोपशम भावकी अपेक्षा अनादिश्रुत है अर्थात् क्षयोपशम भाव सदैवकाल जीवके साथ ही रहता है (चेतनगुण) ॥ (९) सान्तश्रुत पूर्ववत् ही जान लेना; जैसे एक पुरुषने श्रुताध्ययन आरंभ किया, जब वे श्रुत अध्ययन कर चुका तब वे सान्तश्रुत हो गया ? क्षेत्रसे पंचभरतादि सान्तश्रुत है २ कालसे उत्सर्पिणी आदि कालसे भी सान्तश्रुत है ३ भावसे जो अर्हन् भगवान के मुखसे श्रुत प्रतिपादन किया हुआ है वे व्यवच्छेदादि अपेक्षा सान्तश्रुत है ४॥ (१०) अनंत श्रुत-द्रव्यसे बहुतसे आत्मा श्रुत पढ़ेथे वा पढ़ेगे । अनादि अनंत संसार होनेसे श्रुत भी अपर्यवसान है १ क्षेत्रसे ५ महाविदेहोंकी अपेक्षासे भी श्रुत अपर्यवसान ही है २ कालसे उत्सापिणि _ आदिके न होनेसे अनंत है ३ भावसे क्षयोपशम भावकी
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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