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र्थिक नयापेक्षा अनादि अनंत है | और भव्यजीव कर्मापेक्षा अनादि सान्त है क्योंकि कर्मोकी आदि नहीं किस समय जीव कर्मों से बद्ध हुआ, इस लिये कर्म भव्य अपेक्षा अनादि सान्त है २ । और जो आत्मा मुक्त हुआ वे सादि अनंत है, क्योंकि वे संसारचक्रसे ही मुक्त हो गया है और अपुनरावृत्ति करके युक्त है जैसे दग्धवीज अंकूर देनेमें समर्थ नहीं होता है, उसी प्रकार वे मुक्त आत्माओं के भी कमरूपि वीज दग्ध हो गये हैं | और प्रवाह अपेक्षा कर्म अनादि, पयार्यापेक्षा कर्म सादि सान्त है, जैसे कि पूर्व किये हुए भोगे गये अर्पितु नूतन और किये गये सो करने के समय से भोगने के समय पर्य्यन्त सादि सान्त भंग वन जाता है, परंतु प्रवाहसे कर्म अनादि ही चले आते हैं, जैसेकि घट उत्पत्तिमें सादि सान्त है, मृत्तिका रूपमें अनादि है क्योंकि पृथ्वी अनादि है । इसी प्रकार सर्व पदार्थों के स्वरूपको भी जानना चाहिये, वे पदार्थ द्रव्यसे अनादि अनंत है पर्यायार्थिक नयापेक्षा सादि सान्त भी है सादि अनंत भी है अथवा सर्व पदार्थों के जानने के वास्ते सप्त भंग
१ मुक्त आत्मा एक जीव अपेक्षा सादि अनंत है और बहुत जीर्वोकी अपेक्षा अनादि अनंत है, क्योंकि मुक्ति भी अनादि है |