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पुरुषः- ज्ञान चेतनाकी भी अनंत पर्याय हैं, आप कहाँ पर वसते हैं ?
व्यक्ति:- निज गुण परिणत निज स्वरूप शुक्ल ध्यानपूर्वक ऐसी निर्मल ज्ञान स्वरूप पर्यायमें वसता हूं ( यह समभिरूढ नय है ) ||
पुरुषः- निज गुण परिणत निज स्वरूप शुक्ल ध्यानपूर्वक पर्याय में वर्धमान भावापेक्षा अनेक स्थान हैं, तो आप कहां पर वसते हैं ?
व्यक्ति:- अनंत ज्ञान अनंत दर्शन शुद्ध स्वरूप निजरूपमें वसता हूं || यह एवंभूत नयका वचन है ||
इस प्रकार यह सात ही नय वस्ती पर श्री अनुयोग द्वारजी सूत्रमें वर्णन किए गये हैं और श्री आवश्यक सूत्रमें सामायिक शब्दोपरि सप्त नय निम्न प्रकार से लिखे हैं, जैसे किनैगम नयके मत में सामायिक करनेके जब परिणाम हुए तवी. ही सामायिक हो गई || अपितु संग्रह नयके मत में सामायिकका उपकरण लेकर स्थान प्रतिलेखन जब किया गया तब ही सामायिक हुई || और व्यवहार नयके मत में सावध योगका जब परित्याग किया तब ही सामायिक हूई ॥