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________________ (६७) दुविहे पं. तं. निविस्समाणेय णिविठकाइय सुहुमसंपरायए दुविहे पं. तं. पमिवाश्य अप्पा भिवाश्य अहक्खाय चरित्त गुणप्पमाणे सुविहे पं.तं. जनमत्थेय केवलीय सेत्तं चरित्त गुणप्पमाणे सेत्तं जीव गुणप्पमाणे सेत्तं गुणप्पमाणे ॥ भाषार्थः-(प्रश्नः ) सामायिक चारित्र गुणप्रमाण कितने भकारसे वर्णन किया गया है ? ( उत्तरः) द्वि प्रकारसे, जैसे कि इत्वर् काल १ यावज्जीवपर्यन्त २ । ( प्रश्नः) छेदोपस्थापनी चारित्रके कितने भेद है ? ( उत्तरः ) द्वि भेद है, जैसेकि सातिचार १ निरतिचार २ । ( प्रश्नः ) परिहार विशुद्धि चारित्र भी कितने वर्णन किया गया है ? (उत्तरः ) इसके भी द्वि भेद है जैसेकि प्रवेशरूप १ निवृत्तिरूप २ ॥ (प्रश्नः ) सूक्ष्म संपराय चारित्रके कितने भेद हैं ? ( उत्तरः ) दो भेद हैं, जैसेकि प्रतिपाति १ अप्रतिपाति २। (मश्नः ) यथाख्यात चारित्र भी कितने प्रकार वर्णन किया गया है ?
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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