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________________ ( २८ ) आस्रव है। संवर निर्जरासे ही मोक्ष है, क्योंकि जब नूतन काँका संवर हो गया तब तपादि द्वारा प्राचीन कर्मोंकी निर्जरा हुई। जब आत्मा कर्मलेपसे सर्वथा रहित हो गया, सो तिस सम• यकी पर्यायको मोक्ष कहते हैं । सो इस प्रकारसे श्रीजिनेन्द्र देवने तत्त्वोंका स्वरूप पतिपादन किया है तथा मुख्यतामें अद् देवने दो ही द्रव्य कथन किये हैं जैसेकि, जीवद्रव्य १ अजीव २; किन्तु अजीव द्रव्यमें पंचद्रव्य गर्भित हैं जैसेकि-धर्मद्रव्य १ अधर्मद्रव्य २ आकाश द्रव्य ३ कालद्रव्य ४ पुद्गलद्रव्य ५। सो यह पांच ही द्रव्य जड़ रूप है किन्तु जीवद्रव्य ही चेतनालक्षणयुक्त है ।। और इनके ही अनेक लक्षण हैं जैसेकि-अस्तित्वं, वस्तुत्वं, द्रव्यत्वं, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्वं, प्रदेशत्वम् , चेतनत्वं, अचेतनत्वं, मूर्तत्वं, अमूर्तत्व।। यह दश समान गुण सर्व द्रव्योंके बीचमें है, किन्तु एकैक द्रव्य अष्टावष्टौ गुणा भवंति जीव द्रव्ये अचेतनत्वं मूर्तत्वं च नास्ति पुद्गल द्रव्ये चेतनत्वम् मूर्नत्वं च नास्ति।धर्माधर्माकाशकालद्रव्येषु चेतनत्वं मूर्त्तत्वं च नास्ति ॥ एवं द्विद्विगुणवर्जिते अष्टावष्टौगुणाः प्रत्येक द्रव्ये भवंति ॥ दश मान्य गुणों का यह अर्थ है:-तीन कालमें जो स्वः चतुष्टय करि विद्यमान द्रव्य है जैसेकि स्वद्रव्य १ स्वःक्षेत्र र
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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