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( ८) ज्ञान है वही आत्मा है तथा जिस करके जाना जाये वही ज्ञान है। क्योंकि यह अनादि अनंत सम्बन्ध है जो परगुण सम्बन्ध
है, कोई + अनादि सान्त है, कोई सादि सान्त है, अपितु पर___ गुणका सम्बन्ध सादि अनंत नही होता है, सो जव द्रव्य गुण
एकत्व हुए फिर उस द्रव्यका लक्षण पर्याय भी हो जाता है, दीपकके प्रकाशवत्, अपितु स्वगुणों में सर्व द्रव्य अनादि अनंत हैं, परगुणोंमें पर्यायार्थिक नयापेक्षा सादि सान्त है, यथा उत्पाद् व्यय ध्रौव्य युक्तं सत, अर्थात् जो उक्त लक्षण करके युक्त है वही सद् द्रव्य है ॥ पुनः द्रव्य विषय
धम्मो अहम्मो आगासं कालो पुग्गल जंतवो एसलोगोत्ति पणत्तो जिणेहिंवर दंसिहिं । उ० अ० २७ गाथा ॥
वृत्ति-धर्म इति धर्मास्तिकाय १ अधर्म इति अधर्मास्तिकाय २ आकाशमिति आकाशास्तिकायः ३ कालः समयादि: ४ पुग्गलत्ति पुद्गलास्तिकाय: ५ जन्तव इति जीवाः "+ अमव्य आत्माओंका कमौके साथ अनादि अनंत सम्ब