SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - मा- --- - (,२५) देहान् मृति मनुषे यदि तर्हि मोक्षे सिद्धे मुधा किमनुतिष्ठसि साधनानि ? ॥ ३२ ॥ अस्मन्मते तनुमितो निजपुण्य-पाप देहादिभारभृदपारभवाब्धिमग्नः । सम्यक्चरित्र-मति-दर्शनलुप्तभारो जीवः प्रयात्यनिशमूवमियं विमुक्तिः ॥ ३३ ॥ सुख, दुख, ज्ञान प्रभृति आत्मीयगुण शरीर में ही दिखाई पड़ते है. और किसीने भी पूर्वोक्त गुण देह के बहार नहीं - देखे, इसलिये यह बात साफ सबूत होती है कि जिसका गुण जहां है, वह भी वहा ही रहता है, याने आत्मा सर्वव्यापी नहीं है किन्तु देहव्यापी याने जितना बडा शरीर है, उत्तना ही परिणाम आत्माका है, और जिस शरीर में आत्मसंयोग, है उसीसे उसका बन्ध और मुक्ति है ॥ ३१ ॥ यदि कोई आत्माको सर्वव्यापी माने तो वह आत्मा सर्व शरीर से संयुक्त होनेसे उसको सदैव बन्धन प्रसङ्ग होगा और यदि सब शरीरको मिथ्या माने तो मोक्ष स्वयं सिद्ध है, फिर मोक्ष के लिये कोइ भी अनुष्ठान क्यों करना ? ॥३२॥ हमारें मतसे आत्मा शरीरपरिमाणी है, और पुण्य पापके भारसे लिप्त है. जब वह सम्यग् ज्ञान, दशर्न, चारित्र को पाता है तब उसकी ऊर्ध्वगति होती है वहही विमुक्ति ( मोक्ष ) है ॥ ३३ ॥
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy