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________________ (१०) जैनदर्शन का मन्तव्य अव्यवस्थित है तो यह नहीं है क्योंकि पूर्वोक्त रीतिसे जैनदर्शन कथित वस्तुस्वभाव कथन वास्तव वस्तुका निश्चायक है परन्तु उसमें अल्प भी अव्यवस्था नहीं है, जो कई लोग वस्तुका एकही रूप है याने वस्तु भावरूप ही है या अभावरूप है। ऐसा मानते हैं उनके सिद्धान्त में बड़ी भारी अव्यवस्था हो जायगी. और यदि शास्त्रीजी एकही पदार्थ में विरुद्ध धर्मद्वय के स्वीकार को विरोध समझै तो उनके पितामह प्रशस्तपादभाष्यकार के सिद्धान्त को भी विरुद्ध मानना चाहिये क्योंकि- भाष्यकार भी एक ही पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, उसमें नित्यता और अनित्यता मानते है उन्होंने कहा है कि- 'सा तु द्विविधा, नित्या अनित्या च, नित्या परमाणुरूपा कार्यरूपा तु अनित्या.' याने जो पृथ्वी परमाणुरूप है वह नित्य है और जो पृथ्वी कार्यरूप है वह अनित्य है. और नवीन तार्किकगण भी भाव और अभावका समानाधिकरण मानते है यह बात क्या शास्त्रीजी भूल गये ? इन सब बातों से यही सिद्ध होता है कि अलिविलासिसंलाप और. उसके निर्माता ये दोनों ही अनाप्त है । अव जैनसम्मत ईश्वर में जो शास्त्री जी के पूर्वपक्ष है उनको लिखते हैं ताल-भू-गगनसर्वपथीनजीवाः
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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