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________________ ( १८५ ) संवर भावना || जो जो कर्म आनेके मार्ग हैं उनको निरोध करना वे संवर भावना है तथा क्रोधको क्षमासे वशमें करना, मानको मार्दव वा मृदुतासे, मायाको ऋजु भावोंसे, लोभको संतोषसे, इसी प्रकार जिन मार्गों से कर्म आते हैं उन मार्गोका ही निरोध करना सो ही सम्वर भावना है जैसे कि अहिंसा, सत्य, दत्त, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, सम्यक्त्व, व्रत, अयोग, समिति, गुप्ति, चारित्र, मन वचन कायाको वशमें करना वे ही संवर भावना है || निर्जरा भावना || निर्जरा उसका नाम है जिसके करनेसे कर्मोंके वीजका ही नाश हो जाये तब ही आत्मा मोक्षरूप होता है । वह निर्जरा 1 द्वादश प्रकारके तपसे होती है उसीका ही नाम सकाम निर्जरा है, नही तो अकाम निर्जरा जीव समय २ करते हैं किंतु अकाम निर्जरासे संसारकी क्षीणता नहीं होती। सकाम निर्जरा जीवको मुक्ति देती है अर्थात् ज्ञानके साथ सम्यग् चारित्रका आचरण करना उसके द्वारा जीव कर्मोके बीजको नाश कर देते और वही क्रिया जीवके कार्यसाधक होती है । सो यदि जीवने पूर्व सकाम निर्जरा की होती तो अब नाना प्रकार के कप्टें
SR No.010234
Book TitleJain Gazal Gulchaman Bahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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